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Goswami Tulsidas ke Dohe In Hindi: गोस्वामी तुलसीदास के दोहे और चौपाई।
संत तुलसीदास जी महान संत और कवि के साथ ही भगवान राम के परम भक्त के रूप में भी जाने जाते हैं। तुलसीदास जी ने ना सिर्फ अपनी रचनाओं से बल्कि अपने जीवन से भी लोगो को प्रेरित करने का काम किया हैं। ऐसे में आज के इस पोस्ट Tulsidas In Hindi के माध्यम से हम आपको ना सिर्फ उनके जीवन के बारे में बताने वाले हैं बल्कि उनके द्वारा बताए गए जीवन के कुछ मूल को भी कोट्स के जरिये समझने की कोशिश करेंगे। इस क्रम में आइये सबसे पहले जान लेते हैं तुलसीदास जी के जीवन के बारे में:-
“दया धर्म का मूल है पाप मूल अभिमान, तुलसी दया न छोडिये जब तक घट में प्राण।”
पूरा नाम
जन्म |
गोस्वामी तुलसीदास
सन 1532 (संवत – 1589 ) राजापुर, उत्तर प्रदेश |
मृत्यु
पिता |
सन 1623 (संवत – 1660) काशी आत्माराम दुबे |
माता
पत्नी |
हुलसी
रात्रावली |
कार्यक्षेत्र
कर्मभूमि |
कवि, समाज सुधारक
बनारस |
गुरु
धर्म |
आचार्य रामानंद
हिन्दू धर्म |
काल
विधा |
भक्ति काल
कविता, दोहा, चौपाई |
विषय
प्रमुख रचनाये |
सगुण भक्ति
रामचरितमानस, दोहावली, कवितावली, गीतावली, हनुमान चालीसा |
तुलसीदास जी का जीवन – Tulsidas Biography in Hindi
रामचरितमानस के रचयिता संत तुलसीदास के जन्म और प्रारंभिक जीवन को लेकर अभी भी काफी मतभेद है। कोई उनके जन्म वर्ष को 1511 बताता है तो कोई 1554। वहीं बहुत से लोगों का मानना है कि तुलसीदास जी का जन्म 1579 ईसवीं में हुआ था। वैसे अधिकतर मान्यता यही है कि तुलसीदास जी का जन्म 1554 ईसवी में ही हुआ था।
तुलसीदास जी की माता का नाम हुलसी और पिता का नाम आत्माराम दुबे था। उनका जन्म राजापुर (चित्रकूट) में हुआ था। विलक्षण प्रतिभा के धनी तुलसीदास जी का बचपन भी काफी विलक्षण था। कहा जाता है कि वो अपनी माँ के गर्भ में और 12 महीने तक रहे थे। साथ ही जन्म के समय से ही उनके मुख में 32 दाँत थे। साथ ही पैदा होते ही उनके मुँह से पहला शब्द “राम” निकला था। जब वो छोटे थे तभी उनके माता-पिता ने उन्हें अशुभ मानकर उनका त्याग कर दिया था।
उसके बाद तुलसीदास का पालन पोषण एक संत नरहरिदास ने किया। वो तुलसीदास को अपने साथ अयोध्या ले गए और वहाँ पर वो तुलसीदास को रोजाना भगवान राम की कथा रामायण का पाठ सुनाते थे। कहा जाता है कि तुलसीदास जी को उसी समय से ही पूरी रामायण कंठस्थ हो गयी थी। इसके साथ ही तुलसीदास भगवान राम के अनन्य भक्त बन गए।
इसके बाद वे वाराणसी चले गए जहाँ उन्होंने संस्कृत व्याकरण, चार वेदों, छह वेदांगों, ज्योतिष और हिंदू दर्शन के छह स्कूलों में अध्ययन किया। अब तक तुलसीदास साहित्य और दर्शन के विद्वान बन चुके थे। करीबन 5-16 वर्षों तक पढ़ाई पूरी करने के बाद वो अपने स्थान राजापुर लौट आए।
व्यक्तिगत जीवन और सन्यास का रास्ता– Personal life and way of retirement
इसके बाद उनका विवाह रत्नावती नाम की एक बेहद सुंदर कन्या के साथ हो गया। तुलसीदास जी अपनी पत्नी से अथाह प्रेम करते थे। एक बार जब उनकी पत्नी कुछ दिन के लिए मायके चली गयी तो तुलसीदास जी भी उनसे मिलने के लिए निकल पड़े। रात के अँधेरे में वो तैर कर नदी पार कर के जब अपनी पत्नी के पास पहुँचे, तो उन्होंने तुलसीदास की खूब भर्त्सना की। उन्होंने तुलसीदास जी का सामना कटु सत्य से कराते हुए कहा,
“जितना प्रेम तुम मेरे इस माटी के तन से करते हो उतना प्रेम अगर तुम प्रभु राम से करते तो मैं कितनी खुशनसीब होती.!”
“अस्थि चर्म मय देह यह, ता सों ऐसी प्रीति।।
नेकु जो होती राम से, तो काहे भव-भीत ?”
पत्नी के कटु शब्दों ने तुलसीदास जी के दिल को झकझोर दिया। तुलसीदास ने तुरंत ही पारिवारिक जीवन त्याग दिया और फिर खुद की एक तपस्वी के मार्ग पर अग्रसर कर लिया। अब उन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन प्रभु श्री राम की भक्ति में ही बिताने का निश्चय किया। एक तपस्वी के वेश में उन्होंने बद्रीनाथ, द्वारका, पुरी, रामेश्वरम, और हिमालय का भ्रमण किया। उन्होंने अपना अधिकांश समय वाराणसी, प्रयाग, अयोध्या और चित्रकूट में बिताया था।
रामचरितमानस का लेखन – Writing of Ramcharitmanas
महाकवि गोस्वामी तुलसीदास ने वर्ष 1631 में चैत्र मास के रामनवमी पर अयोध्या में रामचरितमानस को लिखना शुरु किया था। रामचरितमानस की रचना महाकवि गोस्वामी तुलसीदास जी ने 2 साल, 7 महीने, और 26 दिन का समय लेकर मार्गशीर्ष महीने में पंचमी तिथि को राम-सीता के विवाह पर्व पर अयोध्या में सम्पूर्ण किया था।
तुलसीदास की सबसे प्रसिद्ध कृति रामचरितमानस ही है, जो की हिंदी की अवधी बोली में लिखा गया है। महाकवि वाल्मीकि द्वारा लिखा गया रामायण संस्कृत में था जिस वज़ह से ये आम लोगों के लिए समझना थोड़ा कठिन है। ऐसे में तुलसीदास जी द्वारा रचित रामचरितमानस सभी के लिए प्रभु राम तक पहुँचने का सरल माध्यम माना जाता है। रामचरितमानस की रचना के पश्चात् महाकवि गोस्वामी तुलसीदास वाराणसी आये और काशी के विश्वनाथ मंदिर में भगवान शिव और माता पार्वती को रामचरितमानस सुनाया था।
तुलसीदास की प्रमुख रचनाएँ – Major Compositions of Tulsidas
अपने १२६ वर्ष के दीर्ध जीवन कल में तुलसीदास जी ने कुल २२ कृतियो की रचना की है जिनमें से पाँच बड़ी एवं छः मध्यम श्रेणी में आते है, इन्हे संस्कृत विद्वान होने के साथ ही हिंदी भाषा के प्रसिद्ध और सर्वश्रेष्ठ कवियों में एक माना जाता है, तुलसीदास जी को महर्षि वाल्मीकि का भी अवतार माना जाता है जो मूल आदिकाव्य रामायण के रचियता थे
आख़िरी समय – Last time
तुलसीदास ने अपने जीवन के अंतिम दिनों में काफी अस्वस्थता का सामना किया। ऐसा माना जाता है कि, काफी दिनों तक अस्वस्थ रहने के बाद 1623 ई के श्रावण (जुलाई-अगस्त) महीने में उनकी मृत्यु हो गई।
निश्चित रुप से तुलसीदास जी का जीवन और उनकी रचनाएँ हम सभी को आदर्श जीवन जीने का सीख सिखा सकती हैं। ऐसे में आइये अब इस पोस्ट Tulsidas In Hindi के माध्यम से हम तुलसीदास जी के द्वारा बताई गई कुछ अनमोल बातों को जानने का प्रयास करते हैं।
Tulsidas ke Dohe
“अभिमानी व्यक्ति चाहे वह आपका गुरु, पिता व उम्र अथवा ज्ञान में बड़ा भी हो, उसे सही दिशा दिखाना अति आवश्यक होता है।”
“उत्साहहीन, निर्बल व दुख में डूबा हुआ इंसान कोई अच्छा कार्य नहीं कर सकता अतः वह धीरे-धीरे दुख की गहराइयों में डूब जाता है।”
“जो इन्सान अपने अहित का अनुमान करके शरण में आये हुए का त्याग कर देते हैं वे क्षुद्र और पापमय होते हैं। दरअसल, उनको देखना भी उचित नहीं होता।”
“तुलसीदास जी ने कहा की धर्म, दया भावना से उत्पन्न होती और अभिमान तो केवल पाप को ही जन्म देता हैं, मनुष्य के शरीर में जब तक प्राण हैं तब तक दया भावना कभी नहीं छोड़नी चाहिए।”
“तुलसीदास जी कहते हैं कि मीठे वचन सब और सुख फैलाते हैं, किसी को भी वश में करने का ये एक मंत्र होते हैं इसलिए मानव ने कठोर वचन छोड़कर मीठे बोलने का प्रयास करे।” – Tulsidas
“तेजहीन व्यक्ति की बात को कोई भी व्यक्ति महत्व नहीं देता है, उसकी आज्ञा का पालन कोई नहीं करता है। ठीक वैसे ही जैसे, जब राख की आग बुझ जाती हैं, तो उसे हर कोई छूने लगता है।” – Tulsidas
“बुद्धिमान शत्रु के अकेले रहने पर भी उसे छोटा नही मानना चाहिए, राहु का केवल सिर बच गया था परन्तु वह आजतक सूर्य एवं चन्द्रमा को ग्रसित कर दुख देता है।” – Tulsidas
“गोस्वामी तुलसीदासजी कहते हैं कि मनुष्य को दया कभी नहीं छोड़नी चाहिए क्योंकि दया ही धर्म का मूल है और इसके विपरीत अहंकार समस्त पापों की जड़ होता है।”
“तुलसीदास जी कहते हैं, ईश्वर पर भरोसा करिए और बिना किसी भय के चैन की नींद सोइए| कोई अनहोनी नहीं होने वाली और यदि कुछ अनिष्ट होना ही है तो वो हो के रहेगा इसलिए व्यर्थ की चिंता छोड़ अपना काम करिए।”
“तुलसीदास जी कहते हैं, जब तक व्यक्ति के मन में काम, गुस्सा, अहंकार, और लालच भरे हुए होते हैं तब तक एक ज्ञानी और मूर्ख व्यक्ति में कोई भेद नहीं रहता, दोनों एक जैसे ही हो जाते हैं।”
“उदासी अत्यंत बुरी चीज़ होती है। हमें कभी भी अपने मस्तिष्क का नियंत्रण उदासी के हाथ में नहीं देना चाहिए। उदासी एक व्यक्ति को उसी प्रकार मार डालती है जैसे की एक क्रोधित सांप किसी बच्चे को।” – Tulsidas
Final Words:-
तुलसीदास जी ऐसे व्यक्तित्व के रूप में जाने जाते हैं जिन्होंने आम इंसान से भगवान का दर्जा हासिल किया है। भगवान राम की भक्ति में अपना जीवन समर्पित करने वाले संत तुलसीदास जी का जीवन हम सभी के लिए प्रेरणास्रोत है। ऐसे में हम आशा करते हैं कि इस पोस्ट Tulsidas In Hindi के माध्यम से निश्चित रूप से आपको तुलसीदास जी के बारे में काफी कुछ जानने को मिला होगा।
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